युद्ध में जीत से लाभ तो हार से हानि भी !
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कोई सरकार कहे या न कहे, यदि वह कोई युद्ध हारेगी,तो उसे उसका चुनावी नुकसान होकर रहेगा।
यदि वह युद्ध जीतेगी तो उसका चुनावी लाभ मिलेगा ही।
यदि बंगला देश मुक्ति के बाद इंदिरा गांधी को लाभ मिला था तो बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के बाद नरेंद्र मोदी को क्यों नहीं मिलेगा ?
1962 के युद्ध के बाद कांग्रेस को चुनावी नुकसान हुआ ही था।यदि 1965 में लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में हमने युद्ध नहीं जीता होता तो कांग्रेस को 1967 के चुनाव में सत्ता से हाथ धोना पड़ सकता था।वैसे भी 1962 की अपेक्षा 1967 के चुनाव में कांग्रेस की लोक सभा सीटें काफी घट गई थीं।
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अब देखिए बंगला देश मुक्ति
का चुनावी लाभ उठाने के लिए इंदिरा गांधी ने क्या किया था।
मैं यहां यह नहीं कह रहा हूं कि उन्होंने गलत किया था।
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1972 में विधान सभाओं के चुनाव के लिए कांग्रेसी घोषणा पत्र का एक छोटा किन्तु महत्वपूर्ण अंश
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‘जहां तक कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र का संबंध है,उसने यह छिपाने की कोशिश बहुत नहीं की है कि भारत -पाक युद्ध में भारत की विजय श्रीमती इंदिरा गांधी के सफल नेतृत्व का प्रतीक है और इंदिरा गांधी के हाथ मजबूत करने के लिए विभिन्न प्रदेशों में अब कांग्रेस पार्टी की ही सरकार होनी चाहिए।’
‘तर्क यह है कि मजबूत केंद्रीय सरकार होने के कारण ही विदेशी आक्रमण का मुंहतोड़ उत्तर दिया जा सका।
किसी को किसी प्रकार का संदेह न रहे ,इस उद्देश्य से
प्रधान मंत्री ने मतदाता के नाम अलग से एक चिट्ठी भी प्रसारित की है जो विभिन्न भाषाओं में अनुवादित होकर घर -घर पहुंचेगी।
उसमें भी इस बात पर जोर दिया गया है कि देशवासियों की एकता और उच्च आदर्शों के प्रति उनकी निष्ठा ने हमें युद्ध में जिताया।अब उसी लगन से हमें गरीबी हटानी है।’
@ साप्ताहिक दिनमान, टाइम्स आॅफ इंडिया प्रकाशन, नई दिल्ली -5 मार्च 1972@
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दरभंगा संसदीय उप चुनाव -30 जनवरी 1972
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कांग्रेस उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री ललित नारायण मिश्र ने कहा कि ‘मुझे दिया गया मत प्रधान मंत्री की नीतियों को दिया गया मत है जिसमें बंगला देश की मुक्ति भी शामिल है।’
@--दिनमान- 30 जनवरी 1972 @
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