1.-कल शाम के मेरे दो पोस्ट से आज के इस पोस्ट को
मिला कर पढ़ें।
2.-राज्यों के चुनाव के सिलसिले में मैंने मध्य प्रदेश और राजस्थान से आ रही खबरांे पर पहले भी गौर किया था।
उन राज्यों में मेरी समझ से जो बातें भाजपा के खिलाफ जा रही थीं,आज के दैनिक भास्कर में मुख्यतः हार के वही कारण बताए गए हैं।
याद रहे कि दैनिक भास्कर वहां सरजमीन का अखबार है।
3.-अब मतों के प्रतिशत पर गौर करें।
इन दोनों राज्यों में दोनों प्रतिद्वंद्वी दलों को मिले मतों का प्रतिशत लगभग समान है।
यानी किसी के पक्ष या विपक्ष में लहर का कोई संकेत नहीं है।
मध्य प्रदेश में तो हारने के बावजूद कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा के प्रतिशत अधिक हैं।
4.-खैर कल्पना कीजिए कि भाजपा को दोनों राज्यों में कम से कम तीन-तीन प्रतिशत वोट भी अधिक मिले होते तो सीटों की दृष्टि से क्या नतीजा होता ?
जाहिर है कि क्या नतीजा होता।भाजपा की सरकार बनती।
5.-अब बताइए कि सिर्फ तीन प्रतिशत मतों की कमी के कितने और क्या-क्या कारण हो सकते थे ?
क्या वे सब कारण हंै जो आज के अखबारों के पन्नों पर नेताओं,बुद्धिजीवियों व राजनीतिक पंडितों ने गिनाए हैं ?
यदि उन सभी कारणों को एक साथ मिला दिया जाए तब तो भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलनी चाहिए थी।
6.-दैनिक भास्कर ने मध्य प्रदेश में एससी-एसटी एक्ट और राजस्थान में फिल्म पद्मावत प्रसंग को मुख्य कारण बताया है।
राजस्थान से पिछले कई महीनों से यह खबर आ रही थी कि वहां के राजपूत नारा लगा रहे हैं ‘रानी तेरी खैर नहीं, पर मोदी से बैर नहीं।’
मध्य प्रदेश से खबर आ रही थी कि एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ सर्वर्णों का सड़कों पर आंदोलन चल रहा है।
जाहिर है कि मध्य प्रदेश में सवर्णों व राजस्थान में राजपूतों की आबादी 3 प्रतिशत से तो अधिक है ही ।
2003 में जब दिग्विजय सिंह सत्ता से बाहर हुए थे तो सबसे बड़ा कारण यह बताया गया था कि उनकी सरकार जमीन वालों से जमीन लेकर अनुसूचित जातियों को बांट रही थी।
7.- अब सवाल है कि मध्य प्रदेश की भावी कांग्रेस सरकार एससी-एसटी एक्ट के साथ क्या सलूक करेगी ?
वह तो कुछ नहीं करेगी।भला क्यों रिस्क लेगी ? उसे 2019 का चुनाव जो जीतना है।
हां,राजग शासित राज्य उस संबंध में एक काम कर सकती है।हालांकि वह भी रिस्क लेना ही होगा।पर, मरता क्या न करता !
याद रहे कि इस एक्ट को लेकर अन्य राज्यों में भी राजग के खिलाफ गुस्सा पल रहा है।वह अगले चुनाव में प्रकट हो सकता है।
8.- मायावती जब उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री थीं तो उन्हें
भी इस एक्ट के दुरुपयोग की शिकायतें मिलने लगी थीं।
अपने सवर्ण वोट बैंक को खुश करने के लिए मायावती सरकार ने जिलों को यह निदेश दिया था कि इस एक्ट का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ आई.पी.सी.की धारा -182 के तहत सख्त कार्रवाई की जाए।
9.-खबर आ रही है कि बिहार में भी जहां -तहां इस एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है।
पता नहीं कि उसकी खबर नीतीश सरकार को है या नहीं।
पर एक चर्चित खबर की सूचना तो होगी ही।
2016 में पटना एम्स के तत्कालीन निदेशक डा.जी.के.सिंह को इसी एक्ट में फंसा कर पुलिस जीप के पीछे बैठाकर हवालात पहुंचा दिया गया था।उन्हें पीने के लिए पानी भी नहीं दिया गया था।दरअसल उन्होंने एक दबंग आई.पी.एस.अफसर को अन्य विवादास्पद कारणों से नाराज कर दिया था।वह अफसर न तो अनुसूचित जाति का है और न ही अनुसूचित जन जाति का।
पटना हाईकोर्ट ने जी.के.सिंह का राहत दी थी।पुलिस को फटकारा।पर पता नहीं कि उस केस की तार्किक परिणति क्या हुई।
मिला कर पढ़ें।
2.-राज्यों के चुनाव के सिलसिले में मैंने मध्य प्रदेश और राजस्थान से आ रही खबरांे पर पहले भी गौर किया था।
उन राज्यों में मेरी समझ से जो बातें भाजपा के खिलाफ जा रही थीं,आज के दैनिक भास्कर में मुख्यतः हार के वही कारण बताए गए हैं।
याद रहे कि दैनिक भास्कर वहां सरजमीन का अखबार है।
3.-अब मतों के प्रतिशत पर गौर करें।
इन दोनों राज्यों में दोनों प्रतिद्वंद्वी दलों को मिले मतों का प्रतिशत लगभग समान है।
यानी किसी के पक्ष या विपक्ष में लहर का कोई संकेत नहीं है।
मध्य प्रदेश में तो हारने के बावजूद कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा के प्रतिशत अधिक हैं।
4.-खैर कल्पना कीजिए कि भाजपा को दोनों राज्यों में कम से कम तीन-तीन प्रतिशत वोट भी अधिक मिले होते तो सीटों की दृष्टि से क्या नतीजा होता ?
जाहिर है कि क्या नतीजा होता।भाजपा की सरकार बनती।
5.-अब बताइए कि सिर्फ तीन प्रतिशत मतों की कमी के कितने और क्या-क्या कारण हो सकते थे ?
क्या वे सब कारण हंै जो आज के अखबारों के पन्नों पर नेताओं,बुद्धिजीवियों व राजनीतिक पंडितों ने गिनाए हैं ?
यदि उन सभी कारणों को एक साथ मिला दिया जाए तब तो भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलनी चाहिए थी।
6.-दैनिक भास्कर ने मध्य प्रदेश में एससी-एसटी एक्ट और राजस्थान में फिल्म पद्मावत प्रसंग को मुख्य कारण बताया है।
राजस्थान से पिछले कई महीनों से यह खबर आ रही थी कि वहां के राजपूत नारा लगा रहे हैं ‘रानी तेरी खैर नहीं, पर मोदी से बैर नहीं।’
मध्य प्रदेश से खबर आ रही थी कि एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ सर्वर्णों का सड़कों पर आंदोलन चल रहा है।
जाहिर है कि मध्य प्रदेश में सवर्णों व राजस्थान में राजपूतों की आबादी 3 प्रतिशत से तो अधिक है ही ।
2003 में जब दिग्विजय सिंह सत्ता से बाहर हुए थे तो सबसे बड़ा कारण यह बताया गया था कि उनकी सरकार जमीन वालों से जमीन लेकर अनुसूचित जातियों को बांट रही थी।
7.- अब सवाल है कि मध्य प्रदेश की भावी कांग्रेस सरकार एससी-एसटी एक्ट के साथ क्या सलूक करेगी ?
वह तो कुछ नहीं करेगी।भला क्यों रिस्क लेगी ? उसे 2019 का चुनाव जो जीतना है।
हां,राजग शासित राज्य उस संबंध में एक काम कर सकती है।हालांकि वह भी रिस्क लेना ही होगा।पर, मरता क्या न करता !
याद रहे कि इस एक्ट को लेकर अन्य राज्यों में भी राजग के खिलाफ गुस्सा पल रहा है।वह अगले चुनाव में प्रकट हो सकता है।
8.- मायावती जब उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री थीं तो उन्हें
भी इस एक्ट के दुरुपयोग की शिकायतें मिलने लगी थीं।
अपने सवर्ण वोट बैंक को खुश करने के लिए मायावती सरकार ने जिलों को यह निदेश दिया था कि इस एक्ट का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ आई.पी.सी.की धारा -182 के तहत सख्त कार्रवाई की जाए।
9.-खबर आ रही है कि बिहार में भी जहां -तहां इस एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है।
पता नहीं कि उसकी खबर नीतीश सरकार को है या नहीं।
पर एक चर्चित खबर की सूचना तो होगी ही।
2016 में पटना एम्स के तत्कालीन निदेशक डा.जी.के.सिंह को इसी एक्ट में फंसा कर पुलिस जीप के पीछे बैठाकर हवालात पहुंचा दिया गया था।उन्हें पीने के लिए पानी भी नहीं दिया गया था।दरअसल उन्होंने एक दबंग आई.पी.एस.अफसर को अन्य विवादास्पद कारणों से नाराज कर दिया था।वह अफसर न तो अनुसूचित जाति का है और न ही अनुसूचित जन जाति का।
पटना हाईकोर्ट ने जी.के.सिंह का राहत दी थी।पुलिस को फटकारा।पर पता नहीं कि उस केस की तार्किक परिणति क्या हुई।
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