सोमवार, 17 दिसंबर 2018

जब-जब 1984 के सिख संहार की बात आती है तो कुछ लोग गुजरात दंगे का राग अलापने लगते हैं।
गुजरात दंगा भी घृणित था।वहां के दंगाइयों की भी निंदा होनी चाहिए, सजा भी।
  पर जो गोधरा मानव दहन की निंदा नहीं करता,उसे गुजरात दंगे पर बोलने का भी कोई नैतिक अधिकार नहीं है।  
देश में कोई भी दंगा नहीं होना चाहिए।सबको शांतिपूर्वक मिलजुल कर रहना चाहिए।
  पर, जब कोई तुलना करेगा तो समय पर उसे कुछ तथ्यों की याद दिलाना भी जरूरी है। 
 2002 के गुजरात दंगे में अल्पसंख्यक समुदाय के 790 और  बहुसंख्यक समुदाय के 254 लोग मरे।
1984 के नरसंहार में सिर्फ दिल्ली में कितने अल्पसंख्यक और कितने बहुसंख्यक मरे ? मृतक सिखों की संख्या तो 3000 बताई गयी।बहुसंख्यक कितने मरे ?कोई तो बताए !
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश के अन्य 40 नगरों में जितने सिख मारे गए,उनकी संख्या 8 हजार से 17 हजार तक बताई गयी थी।
गुजरात दंगे में दंगाई भीड़ को कंट्रोल करने की कोशिश में 
200 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे।
गुजरात पुलिस ने दंगाइयों पर जो गोलियां चलार्इं,उस कारण भी दर्जनों लोग मारे गए थे।
1984 में दिल्ली में ऐसी कोशिशों में कितने पुलिसकर्मियों को खरोंचे लगीं ? पुलिस की गोलियों से दिल्ली में कितने दंगाई मरे ?
जबकि दिल्ली में 3 हजार सिख मार डाले गए ?तीन दिनों तक पुलिस ने कोई प्राथमिकी भी दर्ज नहीं की।
 31 अक्तूबर से लेकर 3 नवंबर तक दिल्ली की सड़कों पर कोई सेना या पुलिस नहीं थी।पुलिस थी भी तो दंगाइयों की मदद में।
 गुजरात में दंगा शुरू होने से कितनी देर बाद पुलिस-सेना सड़कों पर थी ?
 यह सही है कि पूर्व सांसद एहसान जाफरी के यहां से फोन शासन को जाता रहा ,पर उन्हें कोई मदद  नहीं मिली।वे दंगाइयों के शिकार हो गए।
पर दिल्ली में तो राष्ट्रपति जैल सिंह और यहां तक कि इंदिरा -संजय भक्त सरदार खुशवंत सिंह के त्राहिमाम संदेशों को भी 
प्रधान मंत्री व गृह मंत्री ने नजरअंदाज कर दिया था।वे अपने -अपने रिश्तेदारों-मित्रों  को हत्यारी जमातों से बचाना चाहते थे।
 सबसे आखिरी बात
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कहां 1984 और कहां 2015 
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इतने वर्षों तक सज्जन कुमार तथा अन्य आरोपियों ने कानून को अपनी मुट्ठी में बंद कर रखा था।
2015 में एस.आई.टी.नहीं बनती तो सज्जन कुमार, सज्जन व्यक्ति की तरह ही इस धरती से विदा होते।
अंत में
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यह लिखने का मेरा आशय सिर्फ यही है कि जो जितने बड़े व जितने अधिक घृणित दंगे का अपराधी हो,उसकी उतने ही ऊंचे स्वर में निंदा होनी चाहिए।
न किसी की कम और न किसी की अधिक।  

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