शनिवार, 8 दिसंबर 2018

 राज्यों के चुनाव संपन्न हो जाने के बाद अब 2019 के 
लोक सभा चुनाव पर सबकी नजरें रहंेगी।
मेरा हमेशा यह मानना रहा है कि अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़ कर इस देश के अधिकतर मतदाताओं के निर्णय हमेशा ही सही होते हैं।
यह बात पांच राज्यों के रिजल्ट पर भी लागू होगी और आगे भी।
अब नरेंद्र मोदी सरकार की सफलताओं ,उपलब्धियों व विफलताओं को लेकर जनता मन बनाएगी और निर्णय करेगी।
  जिस तरह किसी गरीब परिवार की सबसे बड़ी समस्या 
आर्थिकी ही होती है,उसी तरह भारत की मुख्य समस्या भी गरीबी है।
  इसे कम करने के लिए मोदी सरकार ने अब तक क्या किया ?
अगले चुनाव से पहले उन्हें सम्यक रूप से अपने इस काम का भी हिसाब देना होगा।हिसाब तो देते ही रहे हैं,पर अब एक साथ सम्यक रूप से देना होगा।
   आजादी के बाद से लेकर तब तक का  हिसाब तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने 1985 में सार्वजनिक रूप से दे दिया था।
उन्होंने स्वीकारा था कि केंद्र सरकार तो 100 पैसे भेजती है,पर उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही जरूरतमंदों तक पहुंचते हंै।
यानी 100 पैसे घिसकर 15 पैसे रह जाते हंै।
  अब सवाल है कि आज उसकी क्या स्थिति है ? कितना घिसता है पैसा ?
मुझे तो नहीं मालूम।
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में 100 पैसों में से
 कितने पैसे जरूरतमंदों तक पहुंच पाते  हैं, इसका अध्ययन सभी जानकारों-विशेषज्ञों  को ईमानदारी से करना चाहिए ताकि मोदी सरकार के बारे में लोग अपना मत स्थिर कर सकें।
  100 पैसे घिसकर जब 15 पैसे तक पहुंच रहा था तब इस देश प्रधान मंत्री उच्च शिक्षाप्राप्त लोग थे।
जवाहर लाल नेहरू की कैम्ब्रिज और इंदिरा गांधी  की  आॅक्सफोर्ड में पढ़ाई हुई थी।मोरारजी देसाई तो ब्रिटिश सरकार में उप समाहत्र्ता रह चुके थे।
लाल बहादुर शास्त्री काशी विद्यापीठ से ‘शास्त्री’ थे।
  अब यह सवाल भी है कि इन में से किस प्रधान मंत्री के कार्यकाल में पैसा कितना घिसा ?
 हां,मशहूर कांग्रेसी नेता संजय निरूपम के शब्दों में नरेंद्र मोदी अनपढ़- गंवार हैं।एक ‘अनपढ़ -गंवार’ के कार्यकाल में पैसा कितना घिसा ,यह जानना दिलचस्प होगा।
   पढ़ा-लिखा प्रधान मंत्री बनाम ‘अनपढ़ -गंवार’ प्रधान मंत्री ! कौन गरीब देश को बेहतर ढंग से चलाता है ? 
याद रहे कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी की शिक्षा-दीक्षा भी कैम्ब्रिज में ही हुई है।
    

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