सोमवार, 24 दिसंबर 2018

संदर्भ ः नसीरुद्दीन शाह का भय
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क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की बेहतरी अधिक जरूरी
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 भारत में जितने आरोपितों के खिलाफ मुकदमे चलते हैं,
उनमें से औसतन सिर्फ 45 प्रतिशत को ही सजा हो पाती है।
 यानी 55 प्रतिशत अपराधी छूट जाते हैं।
इन 55 प्रतिशत अपराधियों के शिकार हुए लोग कितना डरे -डरे रहते होंगे,इसकी कल्पना की ही जा सकती है।
 सजा का प्रतिशत अमेरिका में 93 तो जापान में 99 है।पाकिस्तान में तो सिर्फ 10 प्रतिशत आरोपितों को ही सजा हो पाती है।
  यानी पाकिस्तान में 90 प्रतिशत लोग डरे -डरे रहते होंगे।
दरअसल अन्य उपायों के साथ- साथ क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को बेहतर बनाने की अधिक व नितांत जरूरत है।
 इसके लिए राज्य स्तर पर बेहतर सरकारें चाहिए।
कानून व्यवस्था राज्य सरकारों के ही जिम्मे होती है।
बेहतर सरकार के लिए बेहतर जन प्रतिनिधि चाहिए।
पर जन प्रतिनिधि चुनने में हमलोगों की प्राथमिकता तो दूसरी ही रहती है।
कल्पना कीजिए कि इस देश में कभी जापान जैसी सरकारें बनने लग जाएं और 99 प्रतिशत आरोपितों को सजा मिलने लगे तो कितने लोग भयभीत रहेंगे ?
जाहिर है कि बहुत ही कम लोग।
जब समाज मेें विभिन्न धर्म व जाति के लोग रहते हैं,ऊंच -नीच की भावनाएं भी मौजूद हैं , तो जाहिर है कि उनमें से कुछ में जातीय व धार्मिक भावनाएं भी होंगी।कहीं तीव्र तो कहीं सामान्य। 
कभी-कभी अपराधों में भी वे भावनाएं काम करती ही होंगी।
पर, यदि सबको इस बात का भय हो जाए कि अपराध करके बचेंगे नहीं तो अपराध के लिए उठे अधिकतर हाथ रुक जाएंगे।
फिर भय के काले बादल छंटने लगेंगे।इसलिए सब समझदार लोग मिलकर यह कोशिश करें कि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम बेहतर बने। लोकतंत्र में लोगों की कोशिशों का महत्व भी है। 
क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को बेहतर बनाने की कोशिश के लिए अभियान की पहल नसीरूद्दीन जैसी  बड़ी हस्ती तो कर ही सकती है।

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