तेलांगना के मुख्य मंत्री के.चंद्रशेखर राव ने अपने पुत्र रामाराव को अपनी पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया है।
इस देश में मुख्यतः कम्युनिस्ट पार्टियांे और भाजपा को छोड़कर लगभग सभी दलों के सुप्रीमो अपने वंशजों व परिजनों को अपना उत्तराधिकारी बनाते जा रहे हैं।
अत्यंत थोड़े दल ही अपवाद रहे गए हैं।
इस बार के राज्य विधान सभा चुनाव में
भी अनेक नेताओं के वंशज टिकट पा गए।कई जीते भी।
कई भाजपा नेताओं के वंशज भी टिकट पाए,पर अभी ऐसी स्थिति नहीं बनी है कि भाजपा का कोई नेता भाजपा को अपने बाद या जीवनकाल में ही अपने पुत्र के हवाले कर दे।कम्युनिस्ट पाटियों में तो इसका सवाल ही नहीं उठता।
यानी देश की राजनीति में वंशवाद-परिवारवाद-जातिवाद की होड़ मची हुई है।
दस-बीस साल तक यदि यह जारी रहा तो हमारे देश में फिर नए ढंग के रजवाड़ों का तानाबाना तैयार हो जाएगा जिस तरह आजादी से पहले 565 रजवाड़े राज कर रहे थे।
यानी वह डायनेस्टिक डेमोक्रेसी होगी।
यदि अधिकतर छोटे -बड़े नेताओं के वंशजों को ही उनकी सीटों से चुनाव लड़ना है तो फिर राजनीतिक कार्यकत्र्ता गण किस उम्मीद में राजनीति में बने रहेंगे या आएंगे ?
राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं की प्रजाति जब लुप्त हो जाएगी तो सवाल यह भी है कि राजनीतिक कर्म करेगा कौन ?
लगता है कि उसका उपाय भी इस देश के अधिकतर नेताओं ने खोज लिया है।
एम.पी.-एम.एल.ए.फंड के ठेकेदार ही राजनीतिक कार्यत्र्ता बन गए हैं और बन रहे हंै।उनमें से अधिकतर बाहुबली होते हैं या रखते हैं।
यदि फंड की राशि कम पड़ रही होगी तो उसे बढ़ा दिया जाएगा,ऐसे भी संकेत हंै।
एक संसदीय समिति ने सांसद फंड की राशि 5 करोड़ रुपए से बढ़ाकर सालाना 25 करोड़ रुपए कर देने की सिफारिश कर रखी है।
पर मोदी सरकार ने अभी तक इसे नहीं माना है।पर कब तक टालेंगे ?
पर यदि अगली बार किसी मिलीजुली सरकार की सदारत करनी पड़ेगी तो अटल जी और मनमोहन जी की तरह फंड
उन्हें भी बढ़ाना ही पड़ेगा।
अगली सरकार चाहे जिस गठबंधन की बने, कुछ लोग उम्मीद कर रहे हैं कि वह मिली -जुली सरकार ही होगी।मिलीजुली सरकारों से फंड बढ़वाना आसान होता है।
कल्पना कीजिए कि पांच करोड़ बढ़कर कम से कम 10 करोड़ रुपए सालाना हो गया तो कार्यकत्र्ताओं की भला कहां कमी रहेगी ?
उस पैसों में से तो सुरक्षा के लिए गोली-बंदूक के लिए पैसे भी निकल आएंगे।दूसरे दलों के गुंडों से अपनी रक्षा के नाम पर !
याद रहे कि हर देश के फौजी मंत्रालय का नाम रक्षा मंत्रालय ही तो होता है।
एक नेता कहा भी करते हैं कि हम किसी बाघ के खिलाफ किसी बकरी को तो चुनाव में खड़ा नहीं कर सकते !
जब बाघ सड़कों पर निकलेगा तो उसके नख -दंत भी उसके साथ ही होंगे।
इस देश में मुख्यतः कम्युनिस्ट पार्टियांे और भाजपा को छोड़कर लगभग सभी दलों के सुप्रीमो अपने वंशजों व परिजनों को अपना उत्तराधिकारी बनाते जा रहे हैं।
अत्यंत थोड़े दल ही अपवाद रहे गए हैं।
इस बार के राज्य विधान सभा चुनाव में
भी अनेक नेताओं के वंशज टिकट पा गए।कई जीते भी।
कई भाजपा नेताओं के वंशज भी टिकट पाए,पर अभी ऐसी स्थिति नहीं बनी है कि भाजपा का कोई नेता भाजपा को अपने बाद या जीवनकाल में ही अपने पुत्र के हवाले कर दे।कम्युनिस्ट पाटियों में तो इसका सवाल ही नहीं उठता।
यानी देश की राजनीति में वंशवाद-परिवारवाद-जातिवाद की होड़ मची हुई है।
दस-बीस साल तक यदि यह जारी रहा तो हमारे देश में फिर नए ढंग के रजवाड़ों का तानाबाना तैयार हो जाएगा जिस तरह आजादी से पहले 565 रजवाड़े राज कर रहे थे।
यानी वह डायनेस्टिक डेमोक्रेसी होगी।
यदि अधिकतर छोटे -बड़े नेताओं के वंशजों को ही उनकी सीटों से चुनाव लड़ना है तो फिर राजनीतिक कार्यकत्र्ता गण किस उम्मीद में राजनीति में बने रहेंगे या आएंगे ?
राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं की प्रजाति जब लुप्त हो जाएगी तो सवाल यह भी है कि राजनीतिक कर्म करेगा कौन ?
लगता है कि उसका उपाय भी इस देश के अधिकतर नेताओं ने खोज लिया है।
एम.पी.-एम.एल.ए.फंड के ठेकेदार ही राजनीतिक कार्यत्र्ता बन गए हैं और बन रहे हंै।उनमें से अधिकतर बाहुबली होते हैं या रखते हैं।
यदि फंड की राशि कम पड़ रही होगी तो उसे बढ़ा दिया जाएगा,ऐसे भी संकेत हंै।
एक संसदीय समिति ने सांसद फंड की राशि 5 करोड़ रुपए से बढ़ाकर सालाना 25 करोड़ रुपए कर देने की सिफारिश कर रखी है।
पर मोदी सरकार ने अभी तक इसे नहीं माना है।पर कब तक टालेंगे ?
पर यदि अगली बार किसी मिलीजुली सरकार की सदारत करनी पड़ेगी तो अटल जी और मनमोहन जी की तरह फंड
उन्हें भी बढ़ाना ही पड़ेगा।
अगली सरकार चाहे जिस गठबंधन की बने, कुछ लोग उम्मीद कर रहे हैं कि वह मिली -जुली सरकार ही होगी।मिलीजुली सरकारों से फंड बढ़वाना आसान होता है।
कल्पना कीजिए कि पांच करोड़ बढ़कर कम से कम 10 करोड़ रुपए सालाना हो गया तो कार्यकत्र्ताओं की भला कहां कमी रहेगी ?
उस पैसों में से तो सुरक्षा के लिए गोली-बंदूक के लिए पैसे भी निकल आएंगे।दूसरे दलों के गुंडों से अपनी रक्षा के नाम पर !
याद रहे कि हर देश के फौजी मंत्रालय का नाम रक्षा मंत्रालय ही तो होता है।
एक नेता कहा भी करते हैं कि हम किसी बाघ के खिलाफ किसी बकरी को तो चुनाव में खड़ा नहीं कर सकते !
जब बाघ सड़कों पर निकलेगा तो उसके नख -दंत भी उसके साथ ही होंगे।
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