शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

राफेल सौदा विवाद पर एक नजर
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1.- कांग्रेस कार्य समिति ने 4 अगस्त, 2018 को यह निर्णय किया था कि वह राफेल सौदे को एनडीए के खिलाफ चुनावी हथियार बनाएगी।
एक नरेंद्र मोदी विरोधी पत्रकार ने लिखा कि राफेल घोटाला, बोफर्स घोटाले से भी बड़ा है।
कांग्रेस ने हाल में पांच राज्यों में राफेल को चुनावी मुद्दा बनाया भी।
बोफर्स को मुद्दा बना कर प्रतिपक्ष ने 1989 के लोक सभा चुनाव में कांगे्रस की सीटें आधी कर दी थी।याद रहे कि 
सुप्रीम कोर्ट बोफर्स घोटाले से संबंधित मुकदमे को तार्किक परिणति तक पहुंचाने की मांग वाली याचिका पर विचार करने के लिए राजी हो गया है।
अब सवाल है कि राफेल के कारण पांच राज्यों में भाजपा के वोट कितने घटे होंगे ?
इस पर कांग्रेस विचार कर ले और फिर उतना वोट घटा कर ही अगले लोक सभा चुनाव के बारे में अपने लिए कोई कल्पना करे।
वैसे भी इस बार मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को 41 प्रतिशत वोट मिले तो भाजपा को 41 दशमलव एक प्रतिशत।
इस साल के राजस्थान विधान सभा चुनाव में  इन दोनों दलों के बीच मतों का अंतर मात्र आधे प्रतिशत का रहा।
2.-याद रहे कि राफेल सौदे से संबंधित याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज  कहा है कि सौदे में कोई कमी नहीं है।केंद्र के फैसले पर सवाल उठाना गलत है।
अब प्रतिपक्ष संयुक्त संसदीय समिति से इसकी जांच की मांग कर रहा है।
जरा याद कर लें  कि बोफर्स सौदे से संबंधित शंकरानंद के नेतृत्व में गठित जे.पी.सी.ने क्या किया था ?
उस समिति ने कहा कि बोफर्स सौदे में न तो कोई दलाली दी गयी और न ही कोई घोटाला हुआ।
पर दूसरी ओर सी.बी.आई.ने स्विस बैंक की लंदन शाखा में दलाली का पैसा जब्त किया ।भारत सरकार के आयकर ट्रिब्यूनल ने मन मोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में ही यह निदेश दिया कि दलाली के उस पैसे पर आयकर बनता है।
 3.-दरअसल जेपीसी में सरकार का बहुमत होता है।वैसे भी घोटाला होने पर भी अपनी सरकार के खिलाफ आम तौर कोई जेपीसी रपट नहीं देती।पुराना इतिहास भी यही है।
यदि अब भी बने तो वही होगा।
पर यदि जेपीसी में मामला चला गया तो प्रतिपक्ष को 2019 के चुनाव में प्रचार के लिए यह मुददा अवश्य मिल जाएगा कि विवादास्पद राफेल सौदे की तो अभी जांच हो रही है।
4.-मेरी समझ से पूरा राफेल मामला मूलतः हथियार के असंतुष्ट सौदागरों का अभियान था जिसमें राजनीतिक फायदा उठाने के लिए अन्य लोग शामिल हो गए थे।
 अन्य लोगों के लिए तो नहीं ,पर मुझे मशहूर पत्रकार अरूण शौरी पर जरूर दया आ रही है।वह कभी खबरखोजी पत्रकारिता के सिरमौर थे।भले एकतरफा लेखन करते रहे,पर जो कुछ वे लिखते रहे,उन्हें  कोई काट नहीं सकता।
 राफेल विवाद में उनकी प्रतिभा काम न आई।
कभी मोदी के कट्टर समर्थक रहे अत्यंत ईमानदार पत्रकार शौरी के मोदी विरोधी अभियान के पीछे मैं कोई मंशा तो नहीं ढूंढ़ सकता,पर लोगबाग तरह- तरह के अनुमान जरूर लगाते हैं।मैं मानता हूं कि उनके व उनके परिवार के खास कर उनके पिता जी एचडी शौरी के पुण्य का ‘बैंक बैलेंस’ इतना बड़ा है कि छोटा -मोटा भटकाव उसे कम नंहीं कर सकता। 
5.-मैंने खुद पर मोदी भक्त होने के आरोप लगने का खतरा उठा कर भी यह लिखा है।
जिसे वैसा आरोप लगाना है,खुशी से लगा ले।लेकिन मैंने तो भई देशहित में यह लिखा है।क्योंकि मैं मानता हूं कि हथियार की खरीद इसलिए नहीं विवादास्पद बना देनी चाहिए कि उसमें किसी बड़े लगाव वाले किसी खास दलाल को दलाली नहीं मिली।देश की रक्षा सुनश्चित करने के  लिए अभी बहुत सारे हथियारों की यहां जरूरत है।
हां, मेरे किसी तथ्य में  कोई गलती हो तो उसे जरूर आप इंगित करंे। 
  

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