बुधवार, 19 दिसंबर 2018

यदि बिहार-उत्तर प्रदेश के लोगों से शिवसेना-मनसे को 
कोई शिकायत हो तो बात समझ में आती है।
क्योंकि उनकी कोई अखिल भारतीय दृष्टि नहीं है।
 पर किसी कांग्रेसी को तो शिकायत नहीं होनी चाहिए।
  क्योंकि बिहार को पिछड़ा बनाए रखने में उनकी ही केंद्र सरकारों की  ही तो मुख्य भूमिका  रही है।
  कल्पना कीजिए कि अंग्रेजों के जमाने में रेल भाड़ा समानीकरण नियम रहा होता तो क्या अविभाजित बिहार में टाटा नगर बस पाता ?
चूंकि खनिज पदार्थों को बिहार से समुद्र तट तक ढो कर ले जाना जमशेद जी नौसरवान जी टाटा के लिए आसान हो जाता।
क्योंकि तब समुद्र तट तक खनिज पहुंचाने में रेल भाड़ा उतना ही लगता जितना धनबाद से जमशेद पुर ले जाने में लगता।
  पर अंग्रेजों ने यह सुविधा नहीं दी थी।
 याद रहे कि निर्यात को ध्यान में रखते हुए अधिक उद्योग समुद्र किनारे वाले राज्यों में लगे।
  आजादी के बाद केंद्र सरकार ने रेल भाड़ा समानीकरण नियम लागू करके बिहार का विकास मद्धिम कर दिया।बिहार के खनिज पर दूसरे राज्य फले- फूले।बिहार की  क्षति की पूत्र्ति नहीं दी गयी।यहां तक कि खनिज राॅयल्टी का रेट भी कम रखा गया।
  याद रहे कि उस समय पूरे देश में जितना खनिज पाया जाता था,उसका 48 प्रतिशत बिहार मेें पाया जाता था।
 लंबे संघर्ष के बाद रेल भाड़ा समानीकरण नब्बे के दशक में ही समाप्त हो सका।
अर्थशास्त्रियों के अनुसार तब तक अविभाजित बिहार को 10 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका था।
  ऐसे में बिहार के लोग रोजी -रोटी के लिए राज्य के बाहर जाएंगे ही।
वैसे भी इस आने -जाने में कोई नियम बाधक है नहीं।
बिहार के लोगों का यदि देश के अन्य राज्यों के कांग्रेसी सरकारें स्वागत करंेगी तो वे रेल भाड़ा समानीकरण लागू करने की गलती का प्रायश्चित मात्र ही करेगी।
कमलनाथ जी ने यदि यह रेल भाड़ा समानीकरण का यह इतिहास न पढ़ा हो तो अब से भी पढ़ लें ।वैसे बिहार के प्रति के सौतेलेपन के अन्य उदाहरण भी हैं। 

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