सी.पी.आई.के बुद्धिजीवी नेता यू.एन.मिश्र नहीं रहे।
विनोद मिश्र ,तकी रहीम और यू.एन.मिश्र उन कुछ थोड़े से
कम्युनिस्ट नेताओं में थे जिनके पास मैं घंटों बैठा करता था।
इन नेताओं में गैर कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों के साथ भी लंबी बातें करने का धैर्य होता था।
यू.एन.मिश्र की शालीनता का भी मैं कायल था।
आज ही जाना कि वे बिहार के वैशाली जिले के मूल निवासी थे।
यानी उन पर जिले का असर था।
मिश्र जी कम्युनिस्ट पार्टी के एक ऐसे दैनिक अखबार ‘जनशक्ति’@पटना@ के समाचार संपादक और बाद में संपादक रहे जिसे पढ़ना मैं जरूरी मानता था।
मैं ही क्या, 1977 में तत्कालीन मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर ने तो अपने अफसरों को निदेश दे दिया था कि वे जनशक्ति में छपे संपादक के नाम पत्रों को भी पढ़ें और उनमें प्रकाशित जन शिकायतों को दूर करने के लिए कदम उठाएं।ऐसा अखबार निकालते थे मिश्र जी और उनकी टीम के सदस्य।
वैसे भी उन दिनों अखबारांे का सरकारों पर आज की अपेक्षा अधिक नैतिक असर था।
खैर जब बिहार में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी कमजोर होने लगी तो यू.एन.मिश्र ने टाइम्स आॅफ इंडिया में तीन किस्तों में आत्म आलोचनात्मक लेख लिखा था।
अफसोस है कि उनकी कटिंग मेरे पास नहीं है।काश ! कम्युनिस्ट नेतृत्व ने उस पर गौर किया होता।
यू.एन.मिश्र के दौर में लगभग हर दल से ऐसे लोग
जुड़ते थे जिनका उद्देश्य बड़ा होता था।
विनोद मिश्र ,तकी रहीम और यू.एन.मिश्र उन कुछ थोड़े से
कम्युनिस्ट नेताओं में थे जिनके पास मैं घंटों बैठा करता था।
इन नेताओं में गैर कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों के साथ भी लंबी बातें करने का धैर्य होता था।
यू.एन.मिश्र की शालीनता का भी मैं कायल था।
आज ही जाना कि वे बिहार के वैशाली जिले के मूल निवासी थे।
यानी उन पर जिले का असर था।
मिश्र जी कम्युनिस्ट पार्टी के एक ऐसे दैनिक अखबार ‘जनशक्ति’@पटना@ के समाचार संपादक और बाद में संपादक रहे जिसे पढ़ना मैं जरूरी मानता था।
मैं ही क्या, 1977 में तत्कालीन मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर ने तो अपने अफसरों को निदेश दे दिया था कि वे जनशक्ति में छपे संपादक के नाम पत्रों को भी पढ़ें और उनमें प्रकाशित जन शिकायतों को दूर करने के लिए कदम उठाएं।ऐसा अखबार निकालते थे मिश्र जी और उनकी टीम के सदस्य।
वैसे भी उन दिनों अखबारांे का सरकारों पर आज की अपेक्षा अधिक नैतिक असर था।
खैर जब बिहार में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी कमजोर होने लगी तो यू.एन.मिश्र ने टाइम्स आॅफ इंडिया में तीन किस्तों में आत्म आलोचनात्मक लेख लिखा था।
अफसोस है कि उनकी कटिंग मेरे पास नहीं है।काश ! कम्युनिस्ट नेतृत्व ने उस पर गौर किया होता।
यू.एन.मिश्र के दौर में लगभग हर दल से ऐसे लोग
जुड़ते थे जिनका उद्देश्य बड़ा होता था।
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