सोमवार, 10 दिसंबर 2018

 इस देश में वही सरकार आम लोगों के भले के लिए 
बड़े और प्रभावकारी काम कर सकती है जो इस समझ के साथ अपना कार्यकाल शुरू करे कि उसे अगली बार चुनाव हारना ही हारना है।
  मैं 1967 से देख रहा हूं।कोई सरकार  खतरा नहीं उठाती।
डा.राम मनोहर लोहिया ने 1967 में अपनी पार्टी की सरकारों से कहा था कि ‘बिजली की तरह कौंधो और सूरज की तरह स्थायी हो जाओ।’
सत्ता  में आने के बाद सभी सरकारें यह  समझने लगती हैं कि हम तो अमर होकर आए हैं।यदि अमर होने में कोई कोर-कसर रह जाएगी तो हम उसे अपने जायज -नाजायज उपायों से पूरा कर ही लेंगे।
ठीक उसी तरह जिस तरह मनुष्य समझता है कि हम कभी मरेंगे नहीं।
भले बुढ़ापे में समझने लगे,पर जवानी में तो कत्तई नहीं ही समझता।
 भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अब कह रहे हैं कि जनता यह तय करे कि उसे मजबूत सरकार चाहिए या मजबूर ?
सवाल है कि आपकी मोदी सरकार लगातार यह कहती रही कि बड़े अफसर उसे वे सब काम नहीं करने देते जो वे जनहित में करना चाहते हैं।
सवाल है कि आपने वैसे अफसरों को सही राह पर लाने के लिए क्या -क्या किया ? बहुत कम किया।
आपने उन पर बिजली क्यों नहीं गिराई ?
 आपको डर था कि उससे आपकी सरकार गिर जाएगी ?
या संविधान बाधक था ?
यदि संविधान बाधक था तो आप उसी सवाल पर जनता से बड़ा जनादेश मांगते।जनता उसी तरह आपको ऐसा बड़ा जनादेश दे देती ताकि आप बाधाएं दूर कर सकें ।
मध्यावधि चुनाव की घोषणा कर 1971 में इंदिरा गांधी ने जनता से कहा था कि हम गरीबी हटाना चाहते हैं,पर निहितस्वार्थी तत्व मुझे ऐसा नहीं करने देते।आप हमारा हाथ मजबूत करते।
जनता ने उन पर विश्वास किया।यह और बात है कि बाद में जनता को धोखा हुआ।  



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