गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

 बिहार में कहा जाता है कि ‘दूध का जला मट्ठा फूंक कर पीता है।’
लगता है कि यह कहावत न तो नरेंद्र मोदी ने सुनी है और न ही अमित शाह ने।शायद गुजरात में ऐसा नहीं कहा जाता होगा !
संभवतः इसलिए भाजपा नेतृत्व इस बार 2004 दुहराने पर आमादा लगता है।
 1999 में राम विलास पासवान राजग में थे।
उस साल के चुनाव में राजग को अविभाजित बिहार की  54 में से 41 सीटें मिली थीं।
 बाद में राम विलास पासवान राजग से निकल गए या निकल जाने के लिए बाध्य कर दिए गए।मलाईदार मंत्रालय छीन कर।
2004 के लोक सभा चुनाव में पासवान लालू के साथ मिल कर चुनाव लड़े।
लालू गठबंधन को 2004 में बिहार की 40 सीटों में से 29 सीटें मिलीं।
 जबकि पासवान सहित राजग को 1999 में अविभाजित बिहार में 54 में से 41 सीटें मिली थीं।
 यदि 1999 के अनुपात में ही राजग को सीटें मिली होती तो 
2004 में भी अटल जी की सरकार केंद्र में बन गयी होती।
  लगता है कि 2004 में दूध का जला 2019 में मट्ठा फूंक कर पीने की जरूरत भाजपा महसूस नहीं कर रही है।भाजपा ने पहले कुशवाहा की परवाह नहीं की और अब पासवान की भी चिंता नहीं करती नजर आ रही है।
   क्या इन दलों के न रहने के कारण होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए भाजपा के पास कोई ब्रह्मास्त्र तैयार है ?
राम मंदिर ब्रह्मास्त्र या ओबीसी वर्गीकरण 
का दांव ? पता नहीं ! 

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