सोमवार, 17 दिसंबर 2018

लगता है कि अल्पावास गृहों का पूरे देश में लगभग वही हाल है जो हाल बिहार के अल्पावास गृहों का है।
चूंकि बिहार का मीडिया अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय रहा है,इसलिए यहां का हाल जल्द जगजाहिर हो जाता है।
हाल में राष्ट्रीय महिला आयोग ने चार राज्यों के 26 अल्पावास गृहों की नमूना जांच करवाई।
इन में से 25 अल्पावास गृहों में संवासियों की  हालत ‘अत्यंत दयनीय’ पाई गयी।
मेरा अनुमान है कि यदि ‘टिस’ की टीम से जांच करवाई होती 
तो शायद और भी चांैकाने वाली बातें सामने आ जातीं। 
 फिर भी एक झलक देखिए।
पश्चिम बंगाल- 
अल्पावास गृह की हालत भीड़भरे जेल की तरह।  
उत्तर प्रदेश-फर्श पर लुढ़कते मानसिक मरीज।
ओडि़शा-हाई.आई.वी. पीडि़तों के लिए चिकित्सा का कोई प्रबंध नहीं।
कर्नाटका-एक अल्पावास गृह सिर्फ कागज पर।
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सरकारी तंत्र इन अल्पावास गृहों का निरीक्षण नहीं करता।
मुजफ्फर पुर के बारे में तो यह खबर मिली कि रिश्वत के साथ संबंधित फाइल अफसरों के पास चली जाती थी और सब कुछ ओके बता दिया जाता था।
शायद देश के अन्य राज्यों में भी वैसा ही होता होगा।
 ऐसे ही चल रहा है अपना देश !

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