शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

पिछले दिनों पटना में कुख्यात अपराधी मुचकुन शर्मा गिरोह के उज्ज्वल व उसके सहयोगियों के साथ मुठभेड़ में पुलिस जवान मुकेश मारा गया था।
  कल मुचकुन  पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मुचकुन के साथ हुई मुठभेड़ फर्जी है।
पर, इस देश में आम तौर से होता यह है कि जिस अपराधी ने किसी पुलिस अफसर या कर्मी को मारा,वह भी अक्सर बाद में पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा जाता है।
ऐसे मामलों में कई बार मृतक पुलिसकर्मी के साथी पुलिसकर्मी अपराधी से बदला ले लेते हैं।
  इसके पीछे सहकर्मी भावना व पुलिसिया धाक दोनों कारण होते हैं।
 दरअसल अधिकतर पुलिसकर्मियों को भी इस बात का  भरोसा नहीं होता कि इस देश का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम शहीद पुलिसकर्मी के हत्यारे को भी उसके असली मुकाम तक पहुंचा पाएगा।हो सकता है कि कोई पुलिस दारोगा ही रिश्वत लेकर पुलिस हत्यारे के खिलाफ वाले  केस को भी कमजोर कर दे।
इसीलिए पुलिसकर्मी  कई बार ‘त्वरित न्याय’ का सहारा लेते हैं।
ऐसी मुठभेड़ें भी ‘क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम’ की बेहतरी की जरूरत को रेखांकित करती हंै। 
  क्योंकि यदि आप फर्जी मुठभेड़ों में पुलिस के हत्यारों को मार गिराने की छूट पुलिस को दे देंगे ,तो पुलिस किसी दिन निर्दोष लोगों को भी स्वार्थवश मारने लगेगी। 

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