सोमवार, 31 दिसंबर 2018

मोदी सरकार ने बड़ी उम्मीद से अक्तूबर, 2017 में 
रोहिणी आयोग का गठन किया था।
रिपोर्ट देने के लिए आयोग को सिर्फ तीन महीने का समय दिया गया था।रपट नहीं आई।
आयोग का कार्यकाल तीन -तीन महीने बढता गया।एक बार तो केंद्र सरकार ने कह दिया था कि अब अवधि विस्तार नहीं होगा।पर हो गया।अब मई में रिपोर्ट आएगी।
ताजा खबर है कि आयोग देशव्यापी सर्वे करेगा।
यानी अब अंतिम रपट आने में वर्षों लग सकते हैं।
 मोदी सरकार चाहती थी कि आयोग की रपट को आधार बना कर 27 प्रतिशत पिछड़ा आरक्षण को तीन हिस्सों में बांट दिया जाए ताकि अति पिछड़ों के वोट राजग के लिए पक्का हो जाए।
 पर लगता है कि आयोग ने ऐसा नहीं होने दिया। 
आयोग केंद्र सरकार ,लोक उपक्रम और केंद्रीय विश्व विद्यालयों में आरक्षण कोटे के तहत बहाल विभिन्न पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व का आंकड़ा जुटा लिया है।उस आधार पर वह अंतरिम रपट दे सकता था।
 अंतरिम रपट के आधार पर केंद्र अपने ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल कर सकती थी।
पर लगता है कि अब वह नहीं हो पाएगा।
यदि मोदी सरकार अगले चुनाव के बाद  सत्ता में नहीं लौट पाएगी तो भाजपा के कई नेता उसके लिए  आयोग के काम काज में ढिलाई को जिम्मेदार मान सकते हैं।

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