सवाल तो काल्पनिक है,पर निराधार नहीं है।
मान लीजिए कि एक दिन इस देश में कोई सनकी सेनाध्यक्ष आ जाए।वह कहे कि अब सेना की देखरेख में विधायिकाएं चलायी जाएंगीं ।
क्योंकि संसद व विधान सभाओं में तो सिर्फ हंगामे होते रहते हैं । उन्हें काम नहीं करने दिया जाता है।लोकतंत्र को पंगु बना दिया गया है।
हर दल प्रतिपक्ष में जाने के बाद यही काम करता है और पीठासीन अधिकारियों ने मार्शल की मदद लेने की परंपरा समाप्त कर दी है।
उस सनकी सेनाध्यक्ष के इस आशंकित कदम पर आम जनता की क्या और कैसी प्रतिक्रिया होगी ?
मान लीजिए कि एक दिन इस देश में कोई सनकी सेनाध्यक्ष आ जाए।वह कहे कि अब सेना की देखरेख में विधायिकाएं चलायी जाएंगीं ।
क्योंकि संसद व विधान सभाओं में तो सिर्फ हंगामे होते रहते हैं । उन्हें काम नहीं करने दिया जाता है।लोकतंत्र को पंगु बना दिया गया है।
हर दल प्रतिपक्ष में जाने के बाद यही काम करता है और पीठासीन अधिकारियों ने मार्शल की मदद लेने की परंपरा समाप्त कर दी है।
उस सनकी सेनाध्यक्ष के इस आशंकित कदम पर आम जनता की क्या और कैसी प्रतिक्रिया होगी ?
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