बिहार के निगरानी अन्वेषण ब्यूरो के रिटायर निबंधक उमेश प्रसाद सिंह के अनुसार ,
‘ मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर ने अपने कार्यकाल में सी.बी.आई.को लिखा था कि ‘सी.बी.आई.को बिहार सीमा में कोई भी गंभीर मामले की जानकारी मिले तो वह गोपनीय ढंग से उसकी जांच शुरू कर दे।उसमें राज्य सरकार की अनुमति आवश्यक नहीं होगी।’
उमेश जी के अनुसार यह आदेश सन 1996 के आरंभ तक प्रभावी रहा।
पर, जब चारा घोटाले की जांच के लिए जनहित याचिका पटना हाई कोर्ट में दाखिल की गयी तो बिहार सरकार ने उस आदेश को निरस्त कर दिया।राज्य सरकार नहीं चाहती थी कि सी.बी.आई. खुद जांच अपने हाथ में ले ले।
उमेश जी ने आंध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री चंद्रबाबू नायडु की ताजा पहल की पृष्ठभूमि में यह पोस्ट लिखा है।
याद रहे कि हाल में नायडु ने अपने राज्य में सी.बी.आई.की सीधी दखल अंदाजी पर पाबंदी लगा दी।
बाद में यही काम ममता बनर्जी ने किया।
उस पर जैसी प्रतिक्रिया आनी थी,वैसी भाजपा की ओर से आई।
उस प्रतिकिया से अलग मैं इस संदर्भ में एक दूसरी बात कह रहा हूंं।
कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद यह पाया गया कि उन्होंने निजी संपत्ति के नाम पर अपने वंशजों के लिए अपनी वही पुश्तैनी झोपड़ी छोड़ी थी जो उन्हें उनके पूर्वज से मिली थी।
दूसरी ओर, इस साल के प्रारंभ में यह खबर आई थी कि
चंद्रबाबू नायडु देश सर्वाधिक अमीर मुख्य मंत्री हैं और माणिक सरकार देश के सर्वाधिक कम संपत्ति वाले।
नायडु के पास 177 करोड़ रुपए की संपत्ति है और मानिक सरकार के पास मात्र 26 लाख रुपए की।
यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि नायडु ने वह संपत्ति नाजायज तरीके से बनाई।वैसा कोई सबूत
मेंरे पास नहीं है।पर यह बात तो साफ है कि अधिक संपत्ति वाले नेता लोग जांच एजेंसियों से अक्सर बहुत घबराते हैं।चाहे वे नेता सत्ता पक्ष के हों या प्रतिपक्ष के ।आखिर ऐसा क्यों ?
यदि आप पाक साफ हैं तो डर कैसा ? यदि जांच एजेंसी गलत ढंग से फंसाना भी चाहे तो इस देश में स्वतंत्र न्यायपालिका तो है ही।तीन स्तरीय न्यायपालिका।उसके ऊपर राष्ट्रपति।राष्ट्रपति के पास तो फांसी की सजा तक को माफ कर देने का अधिकार है।
‘ मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर ने अपने कार्यकाल में सी.बी.आई.को लिखा था कि ‘सी.बी.आई.को बिहार सीमा में कोई भी गंभीर मामले की जानकारी मिले तो वह गोपनीय ढंग से उसकी जांच शुरू कर दे।उसमें राज्य सरकार की अनुमति आवश्यक नहीं होगी।’
उमेश जी के अनुसार यह आदेश सन 1996 के आरंभ तक प्रभावी रहा।
पर, जब चारा घोटाले की जांच के लिए जनहित याचिका पटना हाई कोर्ट में दाखिल की गयी तो बिहार सरकार ने उस आदेश को निरस्त कर दिया।राज्य सरकार नहीं चाहती थी कि सी.बी.आई. खुद जांच अपने हाथ में ले ले।
उमेश जी ने आंध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री चंद्रबाबू नायडु की ताजा पहल की पृष्ठभूमि में यह पोस्ट लिखा है।
याद रहे कि हाल में नायडु ने अपने राज्य में सी.बी.आई.की सीधी दखल अंदाजी पर पाबंदी लगा दी।
बाद में यही काम ममता बनर्जी ने किया।
उस पर जैसी प्रतिक्रिया आनी थी,वैसी भाजपा की ओर से आई।
उस प्रतिकिया से अलग मैं इस संदर्भ में एक दूसरी बात कह रहा हूंं।
कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद यह पाया गया कि उन्होंने निजी संपत्ति के नाम पर अपने वंशजों के लिए अपनी वही पुश्तैनी झोपड़ी छोड़ी थी जो उन्हें उनके पूर्वज से मिली थी।
दूसरी ओर, इस साल के प्रारंभ में यह खबर आई थी कि
चंद्रबाबू नायडु देश सर्वाधिक अमीर मुख्य मंत्री हैं और माणिक सरकार देश के सर्वाधिक कम संपत्ति वाले।
नायडु के पास 177 करोड़ रुपए की संपत्ति है और मानिक सरकार के पास मात्र 26 लाख रुपए की।
यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि नायडु ने वह संपत्ति नाजायज तरीके से बनाई।वैसा कोई सबूत
मेंरे पास नहीं है।पर यह बात तो साफ है कि अधिक संपत्ति वाले नेता लोग जांच एजेंसियों से अक्सर बहुत घबराते हैं।चाहे वे नेता सत्ता पक्ष के हों या प्रतिपक्ष के ।आखिर ऐसा क्यों ?
यदि आप पाक साफ हैं तो डर कैसा ? यदि जांच एजेंसी गलत ढंग से फंसाना भी चाहे तो इस देश में स्वतंत्र न्यायपालिका तो है ही।तीन स्तरीय न्यायपालिका।उसके ऊपर राष्ट्रपति।राष्ट्रपति के पास तो फांसी की सजा तक को माफ कर देने का अधिकार है।
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