बुधवार, 5 दिसंबर 2018

 मेरी तो व्यक्तिगत राय रही है कि जो वकील राजनीतिक व सामाजिक जीवन में सक्रिय हैं,उन्हें अदालतों में विवादास्पद लोगों की पैरवी नहीं करनी चाहिए।
  वैसे भी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कर्नल पुरोहित जैसे लोगों के वकील कपिल सिबल नहीं होते और न अरूण जेटली याकूब मेमन के वकील बनते  हैं।
  राम जेठमलानी इंदिरा जी के हत्यारों  के वकील बने।
कपिल सिबल ने महाभियोग झेल रहे जज रामास्वामी की वकालत संसद में की और अरूण जेटली यूनियन कार्बाइड के वकील बने,यह सब मुझे ठीक नहीं लगा।
 जहां तक अमरीकी राष्ट्रपति रोनाॅल्ड रेगन के दबाव में राजीव गांधी द्वारा एंडरसन को छोड़े जाने की बात है तो भागल पुर दंगे के समय राजीव गांधी पर कौन सा दबाव था ?
उस समय उन्होंने तब के विवादास्पद एस.पी.के तबादले को रोक दिया था,मुख्य मंत्री से राय किए बिना।तबादला रुक जाने के बाद  दंगा और भी भड़का था।बोफर्स और भागल पुर दंगा ने 1989 में कांग्रेस को केंद्र की सत्ता से बाहर कर दिया।
  जिस तरह भारत अमरीकी राष्ट्रपति के दबाव में आ गया था,क्या वैसी स्थिति में चीन किसी के दबाव में आता ?
  दरअसल हम कमजोर हैं,इसलिए दबाव बन सका।हम कमजोर इसलिए हैं क्योंकि हमारी सरकारों में भ्रष्टाचार बहुत रहा है।भ्रष्टाचार के कारण देश ताकतवर नहीं बन सका।
इस देश में जातिवाद,पैसावाद और विचारधारावाद  भ्रष्ट नेताओं और अफसरों के सबसे बड़े रक्षक हैं।  
  

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