रविवार, 23 दिसंबर 2018

रामवृक्ष बेनीपुरी के जन्म दिन @23 दिसंबर@
पर उनके ही शब्दों में सन 1956 की 
राजनीति की एक झलक !
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‘एक मोह फिर टूटा ! 
राज्य सभा के लिए अंत में गंगा शरण खड़े हुए !
भोर में मैंने पूछा,तो नाहीं की थी।
मुझसे वोटर लिस्ट की नकल भी मंगवा ली थी।
और संध्या में यह रचना !
क्या यही राजनीति है ?
मुझसे साफ क्यों नहीं कहा ?
क्यों लुका-चोरी !
किन्तु, बेनीपुरी,क्या यह मोह सदा के लिए टूट चुका 
है तुम्हारा !
क्यों पुराने शराबी की तरह भट्ठी के निकट पहुंचते ही उस ओर टूट पड़ते हो ?
यदि राजनीति करना चाहते हो, तो उसमें अच्छी तरह पड़ो,
अपना गुट बनाओ, चालबाजियां करो, 
झूठ बोलो ,मित्रों को भी धोखे देने से न हिचको,
नहीं तो हाथ -पैर समेट कर बैठो,
जैसा कि तुम्हारी रानी कहा करती हैं !
तुम उसे मूर्ख मानो ,किन्तु दुनिया को वह 
तुमसे अच्छी तरह समझती है !
तुम्हारी राजनीति के त्रिभुज की तीनों भुजाएं 
बिखर पड़ी हैं!
वहां कौन है तुम्हारा ?
ये छोटे -छोटे लोग !
क्या समझें कि तुम कौन हो ?
राजनीति-शक्ति पूजा !
शक्ति -दांवपेंच !
यदि यह नहीं तो वह नहीं !
आज का समय यह है !
और तुम पुराना सपना देख रहे हो ?
@--रामवृक्ष बेनीपुरी लिखित ‘डायरी के पन्ने से’@ 

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