1.-2004 की बात है।नेपाल के त्रिभुवन विश्व विद्यालय के अंग्रेजी शिक्षक अमरनाथ तिवारी ने एक अर्जी लिखी थी।
अर्जी में व्याकरण की अनेक गलतियां थीं।
बिहार के तत्कालीन राज्यपाल सह विश्व विद्यालयों के चांसलर एम.रामा जोइस ने भागल पुर स्थित तिलका मांझी
विश्व विद्यालय को निदेश दिया,‘अमरनाथ तिवारी की डिग्री रद कर दी जाए।’
बिहार के एक विश्व विद्यालय के मौजूदा प्रो.वी.सी.ने फाइल में जो नोट लिखा है,उसमें गवर्नर,सचिवालय और रजिस्टार तक की स्पेलिंग गलत है।इस पर मौजूदा चांसलर क्या करेंगे ?
-- आज के टाइम्स आॅफ इंडिया-पटना-में प्रकाशित बी.के.मिश्र की रपट पर आधारित।
2.-‘सावधान ! बस एक टाइपो, खराब ग्रामर तीन संवैधानिक संस्थाओं सी.ए.जी.,संसद @पीएसी@और सुप्रीम कोर्ट की साख का कचरा बना सकता है।
--राष्ट्रीय सहारा में इंडिया टूडे हिन्दी के संपादक अंशुमान तिवारी।
3.-अब मेरा अनुभव सुनिए।
नब्बे के दशक की बात है।पटना के एक प्रतिष्ठित हायर सेकंेड्री स्कूल के प्रिंसिपल की हस्त लिखित अर्जी की फोटो -काॅपी मेरे सामने थी।एक बड़े शिक्षक नेता ने मुझे उपलब्ध कराई थी।अर्जी हिन्दी में थी।अनेक गलतियां थीं।
उससे कम गलतियों वाली अर्जी तो हमारे जमाने का कोई स्कूली छात्र भी लिख सकता था।
बाद के वर्षों में यह पता चला कि वह प्रिंसिपल न सिर्फ अयोग्य था,बल्कि भारी भ्रष्ट भी था।
4.-कई साल पहले की बात है।बिहार के एक मुख्य मंत्री ने एक बार परीक्षा संचालन संस्था के प्रधान को शिकायत के लहजे में फोन किया, ‘क्या..... जी,उस शिक्षण संस्थान @नाम लेकर@के सारे विद्यार्थियों को आपने फेल कर दिया ?
प्रधान ने कहा - क्या करते ?
सादी काॅपी पर नंबर देने का तो कोई प्रावधान ही नहीं है।
ऐसे ही चल रहा है अपना देश !
और अपने जन प्रतिनिधि अपने वेतन-भत्ते-पेंशन बढ़ाते जा रहे हैं।
विनोबा जी कहते थे कि ‘यदि कोई रसोइया 100 में 70 रोटियां जला दे तो क्या उसे अगले दिन भी काम पर बुलाया जाएगा ?’
अर्जी में व्याकरण की अनेक गलतियां थीं।
बिहार के तत्कालीन राज्यपाल सह विश्व विद्यालयों के चांसलर एम.रामा जोइस ने भागल पुर स्थित तिलका मांझी
विश्व विद्यालय को निदेश दिया,‘अमरनाथ तिवारी की डिग्री रद कर दी जाए।’
बिहार के एक विश्व विद्यालय के मौजूदा प्रो.वी.सी.ने फाइल में जो नोट लिखा है,उसमें गवर्नर,सचिवालय और रजिस्टार तक की स्पेलिंग गलत है।इस पर मौजूदा चांसलर क्या करेंगे ?
-- आज के टाइम्स आॅफ इंडिया-पटना-में प्रकाशित बी.के.मिश्र की रपट पर आधारित।
2.-‘सावधान ! बस एक टाइपो, खराब ग्रामर तीन संवैधानिक संस्थाओं सी.ए.जी.,संसद @पीएसी@और सुप्रीम कोर्ट की साख का कचरा बना सकता है।
--राष्ट्रीय सहारा में इंडिया टूडे हिन्दी के संपादक अंशुमान तिवारी।
3.-अब मेरा अनुभव सुनिए।
नब्बे के दशक की बात है।पटना के एक प्रतिष्ठित हायर सेकंेड्री स्कूल के प्रिंसिपल की हस्त लिखित अर्जी की फोटो -काॅपी मेरे सामने थी।एक बड़े शिक्षक नेता ने मुझे उपलब्ध कराई थी।अर्जी हिन्दी में थी।अनेक गलतियां थीं।
उससे कम गलतियों वाली अर्जी तो हमारे जमाने का कोई स्कूली छात्र भी लिख सकता था।
बाद के वर्षों में यह पता चला कि वह प्रिंसिपल न सिर्फ अयोग्य था,बल्कि भारी भ्रष्ट भी था।
4.-कई साल पहले की बात है।बिहार के एक मुख्य मंत्री ने एक बार परीक्षा संचालन संस्था के प्रधान को शिकायत के लहजे में फोन किया, ‘क्या..... जी,उस शिक्षण संस्थान @नाम लेकर@के सारे विद्यार्थियों को आपने फेल कर दिया ?
प्रधान ने कहा - क्या करते ?
सादी काॅपी पर नंबर देने का तो कोई प्रावधान ही नहीं है।
ऐसे ही चल रहा है अपना देश !
और अपने जन प्रतिनिधि अपने वेतन-भत्ते-पेंशन बढ़ाते जा रहे हैं।
विनोबा जी कहते थे कि ‘यदि कोई रसोइया 100 में 70 रोटियां जला दे तो क्या उसे अगले दिन भी काम पर बुलाया जाएगा ?’
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