शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

नए साल में नेता लें चुनावी भाषणों में शालीनता का संकल्प--सुरेंद्र किशोर


अगले लोक सभा चुनाव के लिए अनौपचारिक प्रचार तो शुरू ही हो चुका है,पर औपचारिक प्रचार में भी अब अधिक समय बाकी नहीं है।
 तीन दिन बाद नया साल शुरू हो रहा है।नए साल में अनेक लोग कुछ न कुछ नया करने का संकल्प लेते  हैं।
 इस बार नेता लोग भी यह काम करें।
लोकतंत्र पर बड़ा उपकार होगा ,यदि वे यह संकल्प लें  कि प्रचार में शालीनता रहेगी।
  चुनावी सभाओं में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की जम कर आलोचना कीजिए।पर सिर्फ उन्हीं शब्दों का इस्तेमाल कीजिए जिन शब्दों के इस्तेमाल की इजाजत नियमानुसार संसद में दी जाती है।आखिर चुनाव तो संासद चुनने  के लिए ही तो है !
पहले से ही प्रैक्टिस रहे तो बाद में ठीक रहेगा।
आम तौर से आज कल अनेक नेतागण अपने विरोधियों के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं,उनमें से अनेक शब्द असंसदीय हैं।कोई आम शालीन व्यक्ति आम बोलचाल में वैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करता।
हालांकि सारे नेता  अशिष्ट शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते।
वाद -विवाद के स्तर में गिरावट के बावजूद आज भी  कुछ  ऐसे नेता भी मौजूद  हंै जो शालीन शब्दों का ही इस्तेमाल करते हैं।
  पर वह तो अपवाद है।
पिछले एक चुनाव में बड़े -बड़े नेताओं ने एक दूसरे के खिलाफ तब तक के अश्लीलत्तम शब्दों का इस्तेमाल किया था। माहौल में कटुता फैल गई थी। 
 चुनाव के बाद बिहार के एक बड़े नेता ने कहा कि इसे होली की गालियों की तरह ही भुला दिया जाना चाहिए।
 पता नहीं कि नेतागण भूल पाए या नहीं,पर आम नौजवानों के दिल ओ दिमाग पर उन गालियों का कैसा असर पड़ा होगा,इसका तनिक भी एहसास नेतओं को है ?
अरे भई, इस लोकतंत्र को गरिमापूर्ण बनाए रखोगे तो अच्छे लोग राजनीति में आने को सोचेंगे।
पहले से एक खास धारणा बनी हुई है।यानी राजनीति में जाने पर वहां झूठ बोलने की मजबूरी होती है।
अब यह धारणा बन रही है कि गाली -गलौज करना भी जरूरी होगा।
कम से कम इस धारणा को निर्मूल करने के लिए तो नए साल में नेतागण  संकल्प लें।
  --पेशकार तो पकड़ाए,पर ऊपर वाले ?--
बिहार निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने जांच में पाया है कि पटना निबंधन कार्यालय के रिटायर पेशकार देवेन्द्र प्रसाद सिंह के पास पटना में तीन मकान व फ्लैट हैं।सालिम पुर अहरा,खजांची रोड और आलम गंज में आवासीय संपत्ति है।इसके अलावा भी  संपत्ति का भी पता चला है।
जाहिर है कि यह सब जायज आय से संभव नहीं है।
पर, यह तो पेशकार की संपत्ति है।इस पेशकार ने जिन-जिन
निबंधकों के साथ काम किए,उनके पास कितनी संपत्ति होगी ?इसका अंदाजा कोई भी जानकार व्यक्ति लगा सकता है।
इसकी जांच ब्यूरो की रूटीन ड्यूटी में शामिल होनी चाहिए।
  पर वैसा तो होता नहीं है।
इसलिए इस संबंध में एक नियम बनना चाहिए।
देवेन्द्र जैसा कोई भी पेशकार,मुंशी अथवा निजी सचिव बड़ी संपत्ति के साथ पकड़ा जाए तो उनके बाॅस यानी साहबों की
 संपत्ति की भी जांच करा लेना कानूनन जरूरी होना चाहिए।भले उनके खिलाफ कोई शिकायत आई हो या नहीं।भले वे जांच के बाद निर्दोष पाए जाएं।
यदि ऐसा कानून बन जाए तो फर्क पड़ेगा।
कौन नहीं जानता कि कोई जिला परिवहन पदाधिकारी अपनी नाजायज आय की राशि में से ही ऊपर भी पहुंचाता है।कभी कभी डी.टी.ओ. तो निगरानी की चपेट में आ जाता है,पर ऊपर वाले का बाल बांका नहीं होता।
--विधायिका में हंगामे से सरकार को ही राहत--
आए दिन यह खबर आती रहती है कि फलां अफसर या कर्मचारी घूस लेते रंगे हाथ पकड़ा गया।
पर बाद में लोग भूल जाते हैं कि उस अफसर का क्या हुआ ?
उसे अंततः सजा हुई या वह सजामुक्त हो गया ?
यदि विधायिका की बैठकें सुचारू रूप से चलतीं तो कोई सदस्य एक  सवाल पूछता।वह सवाल ऐसे सरकारी सेवकों के बारे में होता।सवाल होता कि पिछले पांच साल में कितने सरकारी सेवकों को घूस लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया ? उनमें से कितनों को सजा हुई ?
कितने दोषमुक्त हुए ?
जानकार लोग बताते हैं कि ऐसे मामलों में 90 प्रतिशत से अधिक घूसखोर अंततः सजामुक्त हो जाते हंै।
 यदि विधायका  में संबंधित मंत्री यह जवाब दे कि 90 प्रतिशत दोषमुक्त हो गए तो जनता में सरकार की कितनी फजीहत होगी ?
  पर सदन को प्रतिपक्ष चलने दे तब तो ऐसे सवालों के जवाब हो ! यानी, ऐसे मामले में प्रतिपक्ष जाने- अनजाने सरकार की ही मदद कर देता है। बल्कि उन भ्रष्ट सेवकों का सहायक सिद्ध होता है जो येन केन प्रकारेण अंततः सजा से बच जाते हैं।
  --सहयोगी दल पर बरसती कृपा--
उत्तर प्रदेश में ‘अपना दल’ भाजपा की सहयोगी पार्टी है।
आजकल अपना दल  भाजपा से नाराज चल रहा है।हालांकि चुनाव के ठीक पहले अधिकतर सहयोगी दल अपने -अपने कारणों से थोड़ा नाराज हो ही जाते हैं।समय के साथ कुछ मान जाते हैं, पर कुछ अन्य विद्रोह कर बैठते हैं।
  अपना दल क्या करेगा ?
देखना दिलचस्प होगा।
हालांकि भाजपा को ‘अपना दल’ से ऐसी उम्मीद नहीं थी।
क्योंकि भाजपा सरकारों ने अपना दल के नेताओं पर हाल ही में बड़ी कृपा बरसाई थी।
अपना दल के अध्यक्ष आशीष पटेल उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य हैं।
उन्हें सरकार ने हाल में वह बंगला दे दिया जो पहले पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत नारायण दत्त तिवारी को मिला हुआ था।
इससे पहले मायावती वाला बंगला  शिवपाल सिंह यादव को मिल चुका है।
  इतना ही नहीं,केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल को हाल में नई दिल्ली के सफदरजंग रोड पर बड़ा बंगला दे दिया गया।
--भूली बिसरी याद--
दिवंगत लहटन चैधरी बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष थे।सांसद थे।राज्य में कैबिनेट मंत्री थे।
1987 में उनकी आत्म कथा आई थी।
कोसी योजना की दुर्दशा के बारे में उन्होंने आत्म कथा में लिखा था कि ‘कोसी नदी की बाढ़ की विभीषिका से त्राण पाने के नाम पर ठेकेदारों, इंजीनियरों और नेताओं के सगे- संबंधियों ने सरकारी धन को जम कर लूटा है।’
 उन्होंने लिखा कि ‘सन् 1954 की भीषण बाढ़ के बाद सन 1955 में नदी के किनारे तटबंध बनाने और वीर पुर में बराज निर्माण का काम शुरू किया गया।
पर आज क्या हो रहा है ?
कोई अंधा भी देख सकता है कि कोसी योजना में किस तरह बेदर्द और बेशर्म लूट का बाजार गर्म है।
कौन नहीं जानता कि 25-30 प्रतिशत भी काम किए बगैर शत -प्रतिशत का भुगतान ठेकेदारों को कर दिया जाता है।
कहीं- कहीं तो केवल कागज पर ही बिल बना कर पैसे उठा लिए जाते हैं।ये ठेकेदार कौन हैं ?
कुछ पेशेवर ठेकेदार तो हैं ही,लेकिन इसमें भरमार है इंजीनियरों और नेताओं के सगे -संबंधियों की।
साथ ही, ऐसे गुंडा तत्व हैं जो रिवाल्वर के बल पर काम लेते हैं और बिल बनवाते हैं।’
चैधरी जी ने तो इतना ही लिखा।अब दो अन्य कहानियां पढि़ए।ऐसी लूट के खिलाफ विरोधी दलों के नेताओं ने सत्तर के दशक में वीर पुर में जन सभा की।जन सभा पर पुलिस संरक्षित गुंडों ने हमला कर दिया।उस हमले में दो पूर्व मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर और सरदार हरिहर सिंह को भी चोटें आई थीं।
एक बंगाली इंजीनियर ने जब जाली बिल का विरोध किया तो ठेकदारों ने उसकी बेटी के साथ उसके सामने ही  बलात्कार किया।बेचारा इंजीनियर पागल हो गया।कभी ऐसे भी चलता था 
बिहार का शासन !! 
--और अंत में-
यह अच्छी बात है कि पटना के राम कृष्ण नगर थाने के बेईमान टोला का नाम बदल कर लोगों ने ‘नया चक’ कर दिया।
पर,बिहार में एक गांव का नाम ‘चोरवा टोला’ भी है।
ऐसे नामों को बदलने का अभियान चलाने की जरूरत है।
@--कानोंकान-प्रभात खबर-बिहार-28 दिसंबर 2018@

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