मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

2004 में जब चंद्रबाबू नायडु आंध्र प्रदेश विधान सभा का
चुनाव हार गए तो देश के अधिकतर राजनीतिक पंडित 
बाद के कई वर्षों तक यह ‘फतवा’ देते रहे कि ‘विकास को वोट नहीं मिलते।’  
 पांच राज्यों की चुनाव प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है।फिर भी  कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने उसी तरह की टिप्पणियां करनी शुरू कर दी हैं।
अरे भई,थोड़ी प्रतीक्षा कर लें।इन राज्यों की  जमीनी हकीकत से रुबरू हो जाएं । फिर कुछ कहें तो सटीक होगा और लोगों का ज्ञानवर्धन होगा।
 अपने यहां यह पुरानी परंपरा है कि जीतने वाले सीटें गिनते हैं और हारने वाले मतों का अंतर व प्रतिशत।
 आत्म संतोष व कार्यकत्र्ताओं के मनोबल को बनाए रखने के लिए यह उनके लिए जरूरी भी होता है।
 पर इस चुनाव में परसंेटेज के जरिए आप किस बड़े नतीजे पर पहुंचेंगे , इस पर भी विचार कर लीजिएगा। 
  चंद्रबाबू नायडु ने 2002 के गुजरात दंगे के बाद भी केंद्र की राजग सरकार को समर्थन जारी रखा था।उस पर  आंध्र के मुस्लिम नेताओं ने कहा कि आप समर्थन वापस लीजिए ।नहीं तो उसका परिणाम आपको भुगतना पड़ेगा।
नायडु ने समर्थन वापस नहीं लिया।स्वाभाविक ही था कि उन्हें मुसलमानों के वोट नहीं मिले।
2001 की जन गणना के अनुसार आंध्र में 9 प्रतिशत मुसलमान थे।
 नायडु के दल को 1999 की अपेक्षा 2004 में 7 प्रतिशत वोट कम मिले थे।
 फिर भी 2004 में उन्हें 37 प्रतिशत वोट मिले।
यदि गुजरात के कारण नायडु के वोट नहीं घटे होते तो क्या यह कहा जा सकता था कि विकास को वोट नहीं मिलते ?
ध्यान रहे कि मुस्लिम मतदाताओं के दिल ओ दिमाग पर  विकास से काफी अधिक बड़ा मुद्दा हावी था।

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