लोक सभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कल सदन में हंगामा कर रहे सांसदों को फटकारा और पूछा कि ‘क्या हम स्कूल के बच्चों से भी गए -गुजरे हैं ?’
ऐसा कह कर स्पीकर ने स्कूली बच्चों और उनके शिक्षकों का अपमान किया है।
स्कूली बच्चे तो भोले और नादान होते हैं।ऐसा भोलापन उन सांसदों में कहां ?
दूसरी ओर टीचर जब चाहते हैं,बच्चे शांत भी हो जाते हैं।
आप महोदया तो चाहती भी नहीं हैं।सिर्फ लोगों की सहानुभूति पाने के लिए कुछ ऐसे वाक्यों का यदाकदा उच्चारण कर देती हैं ।हाल के दशकों के अन्य स्पीकर भी यही काम करते रहे हैं।यह लोकतंत्र का दुर्भाग्य है।
मेरी सहानुभति तो ऐसे स्पीकरों के प्रति कत्तई नहीं रही है।क्योंकि अनुशासन कायम करने वाले पहले के स्पीकरों को देखा- जाना है।
आपके टेबल पर जो कार्य संचालन नियमावली रखी रहती है,उसे मैंने भी थोड़ा- बहुत पढ़ा है।आपके पास इतने अधिक अधिकार हैं कि कोई सांसद आपकी अनुमति के बिना चूं तक न करे।
राजनारायण जैसे अदमनीय जन प्रतिनिधि अपने संसदीय जीवन में 9 बार मार्शल आउट हो चुके थे।आपके पास भी हट्ठे -कट्ठे मार्शल व संतरी हैें।जरूरत पड़े तो सेना बुला लीजिए जिस तरह बाढ़ और भूकम्प के समय सेना बुलाई जाती है।लोकतंत्र को बाढ़ -भूकम्प जैसा ही खतरा मैं देख रहा हूं।
हां, स्पीकर महोदया, सदन में सदाचरण लाने के लिए आप
प्रधान मंत्री से सहमति हासिल कीजिए।यदि वे सहमत न हों तो आप इस्तीफा दे दीजिए और देश को यह बताइए कि ‘मैं सदन यानी लोकतंत्र की गरिमा गिराने में सहायक नहीं बन सकती।
मैं इसे चंडूखाना बनने नहीं दूंगी।यह कोई टी.वी.चैनल का डीबेट -शो नहीं है।’आपका नाम इतिहास में दर्ज हो जाएगा।
पर उसके लिए पहले अरूण जेटली और सुषमा स्वराज को सदन में खड़ा करा कर उनसे माफी मंगवानी पड़ेगी।इन दोनों ने उस समय अपने हंगामे को सही ठहराया था जब वे प्रतिपक्ष में थे।
एक बात और कह दूं।
चूंकि किसी एक राज्य के कुछ सांसदों ने संसद की गरिमा
को गिराने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है,वह बिहार ही है।उसका विवरण मैं बाद में लिखूंगा।पर, अभी प्रायश्चित के रूप में बिहार से ही कोई बेहतर सलाह जाए तो अच्छा माना जाएगा।इसीलिए मैंने यह सब लिखा।
ऐसा कह कर स्पीकर ने स्कूली बच्चों और उनके शिक्षकों का अपमान किया है।
स्कूली बच्चे तो भोले और नादान होते हैं।ऐसा भोलापन उन सांसदों में कहां ?
दूसरी ओर टीचर जब चाहते हैं,बच्चे शांत भी हो जाते हैं।
आप महोदया तो चाहती भी नहीं हैं।सिर्फ लोगों की सहानुभूति पाने के लिए कुछ ऐसे वाक्यों का यदाकदा उच्चारण कर देती हैं ।हाल के दशकों के अन्य स्पीकर भी यही काम करते रहे हैं।यह लोकतंत्र का दुर्भाग्य है।
मेरी सहानुभति तो ऐसे स्पीकरों के प्रति कत्तई नहीं रही है।क्योंकि अनुशासन कायम करने वाले पहले के स्पीकरों को देखा- जाना है।
आपके टेबल पर जो कार्य संचालन नियमावली रखी रहती है,उसे मैंने भी थोड़ा- बहुत पढ़ा है।आपके पास इतने अधिक अधिकार हैं कि कोई सांसद आपकी अनुमति के बिना चूं तक न करे।
राजनारायण जैसे अदमनीय जन प्रतिनिधि अपने संसदीय जीवन में 9 बार मार्शल आउट हो चुके थे।आपके पास भी हट्ठे -कट्ठे मार्शल व संतरी हैें।जरूरत पड़े तो सेना बुला लीजिए जिस तरह बाढ़ और भूकम्प के समय सेना बुलाई जाती है।लोकतंत्र को बाढ़ -भूकम्प जैसा ही खतरा मैं देख रहा हूं।
हां, स्पीकर महोदया, सदन में सदाचरण लाने के लिए आप
प्रधान मंत्री से सहमति हासिल कीजिए।यदि वे सहमत न हों तो आप इस्तीफा दे दीजिए और देश को यह बताइए कि ‘मैं सदन यानी लोकतंत्र की गरिमा गिराने में सहायक नहीं बन सकती।
मैं इसे चंडूखाना बनने नहीं दूंगी।यह कोई टी.वी.चैनल का डीबेट -शो नहीं है।’आपका नाम इतिहास में दर्ज हो जाएगा।
पर उसके लिए पहले अरूण जेटली और सुषमा स्वराज को सदन में खड़ा करा कर उनसे माफी मंगवानी पड़ेगी।इन दोनों ने उस समय अपने हंगामे को सही ठहराया था जब वे प्रतिपक्ष में थे।
एक बात और कह दूं।
चूंकि किसी एक राज्य के कुछ सांसदों ने संसद की गरिमा
को गिराने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है,वह बिहार ही है।उसका विवरण मैं बाद में लिखूंगा।पर, अभी प्रायश्चित के रूप में बिहार से ही कोई बेहतर सलाह जाए तो अच्छा माना जाएगा।इसीलिए मैंने यह सब लिखा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें