दो चर्चित गेस्ट हाल में इस देश के एक चैनल पर लाइव थे।
दोनों आपस में ऐसे भिड़ गए कि पुलिस बुलानी पड़ी।
वैसे भी वे दोनों तो जहां भी जाते हैं ,अपनी बातें कहने के लिए हमेशा ही अधीर ही रहते हैं।इस बात की परवाह नहीं करते कि श्रोतागण उनकी बात सुन भी पा रहे हैं या नहीं।
इनके लिए एंकर की सलाह-कराह-विनती-फटकार का कभी कोई मतलब नहीं रहा ।इस मामले में ये बेचारे वैसे अकेले गेस्ट नहीं हैं।ऐसे अनेक गेस्ट हैं जिनसे एंकर से अधिक श्रोता परेशान रहते हैं और चैनल बदलते रहते हैं।
पर, इसमें दरअसल मैं अधिक गलती एंकर व चैनल का मानता हूं।
ऐसे अधीर लोगों को या तो आप न बुलाएं या बुलाएं तो उन्हें किसी तरह कंट्रोल करें।
माइक डाउन करके बकबादियों को चुप कराने की कोशिश इधर कुछ चैनलों ने जरूर की है।
पर वह काम भी कारगर ढंग से नहीं हो पा रहा है।मुझे तो लगता है कि एक दिन उन्हें पारदर्शी कांच के पिजड़ों में बंद करके बैठाना पड़ेगा।
पर सवाल है कि आज इस देश की विधायिकाओं में सदस्यों को पीठासीन अधिकारीगण जब कंट्रोल नहंीं कर पाते तो ये बेचारे चैनल वाले किस -किस से दुश्मनी मोल लेंगे।
सदनों की कार्यवाहियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए मार्शल पर खूब खर्च भी किया जाता है,पर उनका कोई उपयोग अब नहीं किया जाता।कभी किया जाता था।
सपा और भाजपा के अतिथियों की झड़प में इस बार सिर्फ पुलिस बुलानी पड़ी ।यदि ऐसा ही जारी रहा तो किसी स्टूडियो में किसी दिन बड़ी हिंसा भी हो सकती है।
फिर तो एंकर साहब को भी कोर्ट में गवाही देनी पड़ेगी।
एंकर जी, समझ लीजिए किसी बाहुबली गेस्ट के खिलाफ आपको गवाही देनी पड़ी तो आप बड़ी आफत में पड़ सकते हैं।इसलिए स्थिति को अभी से टाइट कीजिए।उससे श्रोता-दर्शक भी अतिथियों की बात सुन व समझ पाएंगे।श्रोता आपके प्रति आभार प्रकट करेंगे।
अभी तो कई चैनलों के कार्यक्रमों में इस तरह झांव -झांव व कांव -कांव होते रहते हंै कि कुछ शालीन दर्शक-श्रोतागण किसी अन्य तरह के शो में खुद को व्यस्त कर लेते हैंं।
दोनों आपस में ऐसे भिड़ गए कि पुलिस बुलानी पड़ी।
वैसे भी वे दोनों तो जहां भी जाते हैं ,अपनी बातें कहने के लिए हमेशा ही अधीर ही रहते हैं।इस बात की परवाह नहीं करते कि श्रोतागण उनकी बात सुन भी पा रहे हैं या नहीं।
इनके लिए एंकर की सलाह-कराह-विनती-फटकार का कभी कोई मतलब नहीं रहा ।इस मामले में ये बेचारे वैसे अकेले गेस्ट नहीं हैं।ऐसे अनेक गेस्ट हैं जिनसे एंकर से अधिक श्रोता परेशान रहते हैं और चैनल बदलते रहते हैं।
पर, इसमें दरअसल मैं अधिक गलती एंकर व चैनल का मानता हूं।
ऐसे अधीर लोगों को या तो आप न बुलाएं या बुलाएं तो उन्हें किसी तरह कंट्रोल करें।
माइक डाउन करके बकबादियों को चुप कराने की कोशिश इधर कुछ चैनलों ने जरूर की है।
पर वह काम भी कारगर ढंग से नहीं हो पा रहा है।मुझे तो लगता है कि एक दिन उन्हें पारदर्शी कांच के पिजड़ों में बंद करके बैठाना पड़ेगा।
पर सवाल है कि आज इस देश की विधायिकाओं में सदस्यों को पीठासीन अधिकारीगण जब कंट्रोल नहंीं कर पाते तो ये बेचारे चैनल वाले किस -किस से दुश्मनी मोल लेंगे।
सदनों की कार्यवाहियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए मार्शल पर खूब खर्च भी किया जाता है,पर उनका कोई उपयोग अब नहीं किया जाता।कभी किया जाता था।
सपा और भाजपा के अतिथियों की झड़प में इस बार सिर्फ पुलिस बुलानी पड़ी ।यदि ऐसा ही जारी रहा तो किसी स्टूडियो में किसी दिन बड़ी हिंसा भी हो सकती है।
फिर तो एंकर साहब को भी कोर्ट में गवाही देनी पड़ेगी।
एंकर जी, समझ लीजिए किसी बाहुबली गेस्ट के खिलाफ आपको गवाही देनी पड़ी तो आप बड़ी आफत में पड़ सकते हैं।इसलिए स्थिति को अभी से टाइट कीजिए।उससे श्रोता-दर्शक भी अतिथियों की बात सुन व समझ पाएंगे।श्रोता आपके प्रति आभार प्रकट करेंगे।
अभी तो कई चैनलों के कार्यक्रमों में इस तरह झांव -झांव व कांव -कांव होते रहते हंै कि कुछ शालीन दर्शक-श्रोतागण किसी अन्य तरह के शो में खुद को व्यस्त कर लेते हैंं।
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