बुधवार, 12 दिसंबर 2018


हवाला कांड की लीपापोती कहती है सी.बी.
आई.के तोता बनने की अनसुनी  कहानी-सुरेंद्र किशोर 
चर्चित जैन हवाला कांड के रफादफा हो जाने के कई साल बाद एक  सार्वजनिक बैठक में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर मुख्य न्यायाधीश जे.एस.वर्मा ने कहा था कि उस कांड की फिर से जांच होनी चाहिए।
 जब जस्टिस वर्मा  इस  मामले की सुनवाई कर रहे थे तो उन्होंने अदालत में ही कह दिया था इस केस को लेकर मुझ पर बहुत दबाव पड़ रहा है।वह एक असामान्य बात थी।
उन्होंने बाद में यह भी कहा था कि इस मामले की तो सी.बी.आई.ने ठीक से जांच ही नहीं की।
जांच कैसे करती ? वह लगभग सर्वदलीय  घोटाला कांड जो  था ! उसमें  देश के दर्जनों शीर्ष नेताओं पर हवाला काराबारियों से करोड़ों रुपए का काला धन स्वीकारने का आरोप था।
1988 से लेकर 1991 तक करीब 65 करोड़ रुपए इस देश के 67 बड़े नेताओं व 3 बड़े नौकरशाहोें ने  हवाला काराबारियों से लिए थे ।वही हवाला कारोबारी कश्मीरी  आंतकवादियों को भी  विदेशी धन पहुंचा रहे थे।उन्हीं धंधेबाजों ने  1993 में मुम्बई को दहलाने के लिए आंतकवादियों को विदेशी पैसे दिए थे।
जिन नेताओं पर पैसे लेने का आरोप लगा था,उनमें पूर्व प्रधान मंत्री,पूर्व व वत्र्तमान केंद्रीय मंत्री,पूर्व मुख्य मंत्री तथा अन्य बड़े नेता शामिल थे।
अफसरों में सचिव और कैबिनेट सचिव स्तर के  अफसर थे।
तब किसी ने कहा था कि यदि हवाला कांड में कड़ी कानूनी कार्रवाई हो जाती तो देश की राजनीति में क्रांतिकारी परिवत्र्तन हो सकता था।
यानी तब के विभिन्न दलों के 67 बड़े नेता टाडा में गिरफ्तार होते ।वैसे में राजनीति के स्वरूप में  फर्क आता ही।टाडा इसलिए क्योंकि ऐसे विदेशी स्त्रोत से नेताओं ने पैसे लिए थे जो कश्मीर के आतंकियों को पैसे पहुंचाते थे।
 याद रहे कि तब के बाद इस देश की राजनीति का काले धन से और भी गहरा संबंध कायम हो गया।
  हवाला कांड में सी.बी.आई.नामक तोता ने संबंधित हवाला
करोबारी जैन बंधुओं को अघोषित कारणों से टाडा के तहत गिरफ्तार नहीं किया।
उसने भ्रष्टाचार से संबंधित पहलू की समय पर जांच तक शुरू नहीं की।
 सी.बी.आई. ने मामले को ‘फेरा’ के तहत प्रवत्र्तन निदेशालय को नहीं सौंपा।
सी.बी.आई. को चाहिए था कि वह उन लोगों के मामले आयकर विभाग को सौंपती जिन पर पैसे लेने का आरोप लगा था।पर ‘तोता’ ने ऐसा भी कुछ नहीं किया।यह सब करना सामान्य लोगों से जुड़े मामलों में सी.बी.आई.का रूटीन काम है।
  जब सी.बी.आई.को राष्ट्रीय स्तर के लगभग सर्वदलीय भ्रष्टाचार के मामले की जांच करनी हो तो उसके हाथ -पैर फूलने ही थे।फूल गए थे।
हां,यह इस बात के बावजूद हुआ कि इस केस की जांच की सर्वोच्च न्यायालय निगरानी कर रहा था।
  पर राज्य स्तर के सर्वदलीय भ्रष्टाचार यानी  चारा घोटाले की निगरानी पटना हाई कोर्ट करने लगा तो तोता, बाज बन गया था।
याद रहे कि हवाला या चारा घोटाले में कोई कम्युनिस्ट नेता शामिल नहीं था। 
   पत्रकार विनीत नारायण और राजेंद्र पुरी की लोकहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वर्मा ने सी.बी.आई.के बारे में कहा था कि ‘लगता है कि जैन परिवार की जांच उनके लिए खासी मुश्किल है।समझ में नहीं आता कि जो बात किसी थानेदार की भी समझ में आ जाती ,वह इतनी बड़ी एजेंसी की समझ में क्यों नहीं आ रही ?’
  इस घोटाले की कथा राम बहादुर राय और राजेश जोशी ने 24 अगस्त, 1993 के जनसत्ता में कुछ यूं लिखी थी,‘अप्रैल 1991 में जेएनयू के शोध छात्र शहाबुद्दीन टाडा में पकड़ा गया।वह  जे.के.लिबरेशन फ्रंट का यहां एजेंट है।हवाला के जरिए विदेशों से आया पैसा वह फ्रंट को पहुंचाता है। उसकी गिरफ्तारी से कई सुराग मिले।उस सुराग पर जे.के.जैन के यहां 3 मई 1991 को तलाशी हुई।तलाशी में ब्यूरो के हाथ 58 लाख रुपए नकद आए।.........।’
 ‘दो डायरियां और एक नोटबुक वहां से मिले।उनमें सनसनीखेज रहस्य हैं।आम तौर पर जहां इतनी रकम वगैरह मिलती है,उसके मालिक को ‘कोफेसकोसा’ के तहत  गिरफ्तार कर लिया जाता है।सवाल है कि जेके जैन पर ब्यूरो ने क्यों मेहरबानी की ?’
तब सी.बी.आई.ने अपनी सफाई में कहा था  कि ‘हमने इंटरपोल और राजनयिक माध्यमों से लंदन के बेस्टमिंस्टर बैंक और दुबई के हबीब बैंक के संबंधित खातों और वाउचरों के ब्योरे हासिल करने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली।’
 हवाला कारोबारियों से पैसे पाने वाले अधिकतर नेताओं ने तो इस आरोप को गलत बताया,पर जिन कुछ नेताओं ने जैन बंधु से चंदा या कर्ज लेने की बात स्वीकारी, उनमें आरिफ मुहम्मद खा,चांद राम, चंद्रजीत यादव, शरद यादव ,पुरूषोत्तम कौशिक ,एल.पी.शाही और पे्रम प्रकाश पांडेय शामिल थे।
   इस कांड के संबंध में 1997 में विनीत नारायण ने कहा था कि यह भ्रष्टाचार का ही नहीं ,बल्कि  देशद्रोह का भी मामला है।
इससे कम महत्व के मुद्दों पर संसद में तूफान मच जाता है।पर यह मामला क्यों नहीं उठाया जा रहा है ?
विनीत नारायण ने यह भी कहा था कि ‘मुझे आश्चर्य है कि बोफर्स, लक्खूभाई पाठक रिश्वत कांड,सेंट किट्स, झामुमो रिश्वत कांड और  सुखराम कांड पर रात -दिन लिखने और बोलने वाले देश के कुछ खास मशहूर लोग हवाला कांड पर साढे़ तीन साल से खामोश क्यों हैं ?’ 
@फस्र्टपोस्ट हिन्दी में प्रकाशित मेरा लेख@
   


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